आघात
डॉ. कविता त्यागी
यह उपन्यास
आघात उपन्यास पुरुष प्रधन मध्यवर्गीय समाज में स्त्री की स्थिति का यथार्थ चित्रा प्रस्तुत करने का एक प्रयास है, जहाँ प्रत्येक स्तर पर स्त्राी टूट जाने के लिए या सामंजस्य करने के लिए विवश होती है । इस उपन्यास की नायिका उन अधिकंाश मध्यवर्गीय भारतीय स्त्रिायों के जीवन-संघर्ष से परिचित कराती है और उनके कंटकाकीर्ण जीवन की झाँकी दिखाती है, जो शिक्षित-सम्पन्न परिवारों को अंग होते हुए भी जीवन के वास्तविक सुख से वंचित रहते हैं ।
इस उपन्यास की नायिका हमारे समाज की शिक्षित, संस्कारयुक्त, कर्मठ और परिवार के प्रति समर्पित परम्परागत भारतीय स्त्राी का प्रतिनिध्त्वि करती है । परिवार का प्रेम और विश्वास ही उसके सुख का आधर है परन्तु उसकी त्याग-तपस्यापूर्ण उदात्त प्रकृति तथा पति के प्रति एकनिष्ठ प्रेम ही उसके सुखी जीवन में अवरोध् बन जाता है । उसका स्वच्छन्दगामी पति उसकी त्याग-तपस्या और निष्ठा का तिरस्कार करके अन्यत्र विवाहेतर सम्बन्ध स्थापित कर लेता है और अपने पारिवारिक दायित्वों के प्रति उदासीन हो जाता है । नायिका को पति का स्वच्छन्द-दायित्व-विहीन आचरण स्वीकार्य नहीं है, फिर भी वह अपने वैवाहिक जीवन के पूर्वार्द्ध में सामाजिक संबंधों के महत्त्व और आर्थिक परावलम्बन का अनुभव करके तथा जीवन के उत्तरार्द्ध में अपने संस्कारगत स्वभाव के कारण पति के साथ सामंजस्य करने के लिए स्वयं को विवश पाती है ।
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1
पूजा रघुनाथ गर्ल्स पी0 जी0 कालिज, मेरठ में बी0 ए0 अन्तिम वर्ष की छात्रा थी । कक्षा से छूटने के पश्चात् वह जैसे ही कालिज के मुख्य द्वार पर पहुँची रणवीर शीघ्रतापूर्वक उसके पास पहुँचकर बोला - हैलो बेबी ! कैसी हो ? पहचाना नहीं ? अरे ! क्या दस दिन में ही भूल गयी मुझे ?"
पूजा अनसुना करके रणवीर की ओर न देखने की तथा उसको न सुनने की चेष्ठा करते हुए अपने आप में ही सिमटी हुई-सी-आगे बढ़ती रही । वह शीघ्रातिशीघ्र बस-स्टॉप की ओर बढ़ने का प्रयास कर रही थी। परन्तु, रणवीर कभी स्वयं को सच्चा प्रेमी और कभी सच्चा मित्र बताते हुए उसके बगल में साथ-साथ चलकर उसकी चेष्टा को विफल कर रहा था । पूजा के चेहरे के हाव-भाव बता रहे थे कि वह रणवीर के साथ-साथ चलने से तथा बातें करने से स्वयं को बहुत ही असहज अनुभव कर रही थी । वह उससे पीछा छुड़ाना चाहती थी जो उसके वश की बात नहीं थी ।
पिछले दो वर्षों से जब से उसने स्नातक में प्रवेश लिया था, तभी से रणवीर उसके पीछे पड़ा था । सर्वप्रथम रणवीर ने उसके समक्ष अपनी मित्रता का प्रस्ताव रखा था परन्तु पूजा ने उसको अस्वीकार कर दिया । पूजा जिस पारिवारिक वातावरण में पली-बढ़ी थी, वहाँ पर लडकियों को बचपन से ही एक आदर्श-बेटी, आदर्श-बहन, आदर्श-पत्नी तथा आदर्श माँ के गुणों से संस्कारित किया जाता था । उसके समाज में बहन-बेटियों केे लिए परिवार से इतर किसी भी बाहरी पुरुष के साथ बातचीत करना निषेध था । कुछ तो पूजा का जन्मजात स्वभाव तथा कुछ पारिवारिक-सामाजिक वातावरण का प्रभाव, इन दोनों के संयोग ने पूजा को मितभाषी, संकोची और आदर्श-बेटी बना दिया था । काॅलिज में जाकर वह अपने संस्कार तथा संस्कृति को भूलकर अपनी सहपाठियों के साथ मस्ती में खो नहीं जाती थी, बल्कि सदैव अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित रखती थी । काॅलिज में जाने का उसका लक्ष्य परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करना होता था और काॅलिज से बाहर अपने परिवार की मान-मर्यादा के प्रति जागरूक रहकर अपना कर्तव्य-पालन करना । यही कारण था कि पिछले दो वर्षों में वह बड़ी शालीनता से रणवीर से बचती रही थी ।
पूजा कई बार कुछ लड़कों को काॅलिज के बाहर अश्लील फब्तियाँ कसते हुए, अश्लील गाने गाते हुए लडकियों के साथ छेड़छाड करते हुए देखा था । यद्यपि रणवीर ने कभी ऐसी कोई हरकत नहीं की थी, तथापि पूजा उसे एक नम्बर का आवारा समझती थी । उसकी दृष्टि में जो लड़के गर्ल्स काॅलिज के सामने खड़े होकर इस बात की प्रतीक्षा करते हैं कि कब लड़कियाँ बाहर आएँ और कब वे उनके इर्द-गिर्द भँवरों की तरह चक्कर लगाएँ, वे आवारा के अतिरिक्त कुछ नहीं हो सकते ! इसके विपरीत जो लड़के अपने काम पर ध्यान केन्द्रित करते हुए अपने जीवन में उन्नति करते हैं, लड़कियों को देखकर दृष्टि नीचे कर लेते हैं और आवश्यकता पड़ने पर सदैव दूसरों की सहायता करने के लिए तत्पर रहते हैं, वे सज्जन सदैव अपने माता-पिता का नाम ऊँचा करते हैं । अपने इस विचार से प्रेरित होकर पूजा ने रणवीर को कभी महत्त्व नहीं दिया और दो वर्षों से निरन्तर उसको अनदेखा तथा अनसुना करती आ रही थी ।
रणवीर पूजा की उपेक्षा को अनदेखा करके दो वर्ष से उसके आगे-पीछे चक्कर लगा रहा था । उसके चित् में न तो क्रोध था कि पूजा उसको महत्त्व क्यों नहीं दे रही है और न ही निराशा का भाव था कि जिस लड़की के दरबार में वह दो वर्ष से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है, उसने एक दृष्टि डालकर कभी नहीं देखा कि उसको प्रेम करने वाला कौन है ? कैसा है ? वह सदैव आत्मविश्वास से भरा हुआ किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति से निबटने के लिए सदैव तत्पर रहता था । उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली था । पूजा भी रणवीर से प्रभावित थी, परन्तु उसके एक अनपेक्षित आचरण से । काॅलिज के बाहर खड़े होकर पूजा की प्रतीक्षा करने और उसके समक्ष प्रणय-प्रस्ताव करने से वह पूजा की दृष्टि में एक मर्यादाहीन, आवारा बन गया था । रणवीर के इस आचरण के कारण पूजा उस पर विश्वास न कर सकती थी । वह उससे भयभीत रहती थी कि रणवीर उसकी और उसके परिवार की मान मर्यादा की कुछ हानि न कर दे, स्वयं की तो उसकी अपनी कोई मान-मर्यादा है नहीं !
पूजा जब काॅलिज जाने के लिए घर से निकलती थी, तब से घर वापिस लौटने तक वह इस भय से ग्रस्त रहती थी कि रणवीर या अन्य कोई लड़का उसकी तथा उसके परिवार की इज्जत को कोई चोट न पहुँचा दे । पिछले कुछ दिनों से पूजा छुट्टी के पश्चात् कक्षा से निकलकर ज्यों-ज्यों काॅलिज के मुख्य द्वार की ओर बढ़ती जाती थी, त्यों-त्यों उसकी भय मिश्रित आशंका भी बढ़ती जाती थी । उसकी आशंका का विषय कुछ और नहीं, रणवीर होता था । रणवीर काॅलिज के बाहर खड़ा होकर प्रतीक्षा करता हुआ उसको प्रतिदिन नहीं मिलता था, परन्तु वह प्रतिदिन काॅलिज से निकलती हुई भयग्रस्त रहती थी और मुख्य द्वार पर पहुँचने से पूर्व ही कुछ दूरी पर एक दीवार के पास खड़ी होकर दोनों हाथ जोड़कर ईश्वर से प्रार्थना करने लगती थी - ‘‘हे परमपिता परमात्मा मेरी और मेरे परिवार की मान-मर्यादा बचाये रखना ! आप ही मेरी रक्षा कर सकते हैं ! आप तो अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं और कोई भी रूप धरण करके उसकी रक्षा करने पहुँच जाते हैं । किसी न किसी रूप में आकर आप मेरी भी रक्षा कीजिए, प्रभु ! बस अब आपका ही सहारा है ! प्लीज.... !’’
कुछ मिनट तक हाथ जोड़े हुए आँखें बन्द करके ईश्वर से प्रार्थना करके पूजा यह अनुभव करने लगती थी कि अब उसके साथ कुछ अप्रिय नहीं होगा, क्योंकि परमात्मा अब उसके साथ हैं और विपत्ति पड़ने पर उसकी सहायता करने के लिए वे अवश्य ही किसी न किसी रूप में तुरन्त प्रकट हो जाएँगें । अपनी भक्ति और भगवान की भक्त-वत्सलता पर विश्वास करती हुई वह जब द्वार की ओर बढ़ने लगती, तब उसके चेहरे से आत्मविश्वास की पूर्णता स्पष्ट झलकती थी । वह एक साहसी योद्धा की भाँति द्वार से बाहर निकलती, जैसे किसी युद्ध में शत्रु पर विजय पाना ही उसका लक्ष्य था । अपने लक्ष्य को प्राप्त करना उसका दृढ़ निश्चय था और यह लक्ष्य निरन्तर दो वर्ष से अपरिवर्तित रहा था ।
सप्ताह में कम से कम दो-तीन दिन अवश्य ही ऐसे होते थे जबकि पूजा के काॅलिज से बाहर निकलते ही रणवीर उसकी ओर लपककर आता और मीठी मुस्कान के साथ प्रेमपूर्ण मुद्रा में कहता ‘‘हाय डार्लिंग, कैसी हो ? अपने मित्रों को इतनी अध्कि प्रतीक्षा कराना ठीक नहीं होता है ! तुम्हें देखने के लिए आँखें कब से बेचैन होकर छात्राओं की भीड़ में तुम्हें ढूँढ रही थीं । परन्तु तुम हो कि द्वार से बाहर तब निकलती हो, जब पूरा काॅलिज खाली हो जाता है । बेचारी आँखें....
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प्रेम-प्रलाप करते हुए रणवीर पूजा के साथ-साथ चलता रहता और प्रसन्नचित् होकर अपनी बात को यह अनुभव करते हुए आगे बढ़ाता रहता कि भगवान किसी व्यक्ति के परिश्रम को कभी व्यर्थ नहीं जाने देता । उसे भी अपने परिश्रम का सुपफल अवश्य मिलेगा, भले ही विलम्ब से मिले । भगवान के घर देर है अंधेर नहीं । अपनी असफलता को भी सफलता की सीढ़ी बनाकर आशावादी रणवीर प्रणय-निवेदन की भिन्न-भिन्न युक्तियों का प्रयोग करता हुआ पूजा को प्रसन्न करने के प्रयास में शिष्टता और मर्यादा में रहकर मुस्कराता हुआ बातें करता जाता था, और फिर अचानक उसके कानों में पूजा की मधुर आवाज आती थी । पूजा उसकी ओर उपेक्षापूर्ण दृष्टि डालकर कहती थी ‘‘मैं ऐसी लड़की नहीं हूँ, जैसी तुम समझते हो !’’
इतना कहकर पूजा अपना ध्यान अपने लक्ष्य पर और दृष्टि सड़क पर रखते हुए उसी प्रकार आगे बढ़ जाती थी, जैेसे गुरु द्रोणाचार्य के निर्देश से अर्जुन ने अपना ध्यान और दृष्टि मछली की आँख पर रखकर लक्ष्य प्राप्त किया था । पूजा की उपेक्षा और नकारात्मक उत्तर को रणवीर निराशा की बजाय आशा की एक किरण मानकर सकारात्मक रूप में ग्रहण करते हुए धीमे स्वर में कहता ‘‘उपेक्षा से ही सही, कम से कम देखा-सुना तो है और सुनकर उत्तर भी दिया है । ईश्वर की कृपा रही, तो कुछ दिन बाद हँसकर भी बोलेगी और साथ बैठकर चाय-काॅफी भी पियेगी !’’ फिर हँसते हुए थोड़ी सी ऊँची आवाज में कहता‘‘हम जानते हैं रानी ! आप कैसी लड़की हैं और कैसे परिवार से हैं । यदि नहीं जानते होते तो आपके आगे-पीछे नहीं घूमते-पिफरते हम ! लेकिन आप नहीं जानती कि हम भी एक अच्छे परिवार के सुपुत्र हैं । इसका प्रमाण आपको हमारे संयम और शिष्टाचार से मिल भी गया होगा !’’
रणवीर के निरन्तर बोलते रहने के बाबजूद पूजा अपनी उसी मुद्रा में आगे बढ़ती रहती थी जिससे वह रणवीर को अनुभव करा सके कि न तो वह उसकी बात सुनने में रुचि रखती है अैर न उसके साथ मित्राता करने में । पूजा की निष्ठुरता के उत्तर में रणवीर अपनी उदारता का परिचय देना आवश्यक समझता था, इसलिए चेतावनी की मुद्रा में पुनः विनयपूर्वक कहता था ‘‘आप हमारे साथ बातें करना उचित नहीं समझती ! हमारे बार-बार निवेदन करने पर भी कभी हमारे साथ चाय-काॅफी पीना उचित नहीं मानती, फिर भी हम कुछ नहीं कहते हैं ! जो आपको उचित नहीं लगता, हम वह करने के लिए कभी आपको विवश नहीं करते हैं ! आप जानती हैं, क्यों ?... क्योंकि हम आपको कोई कष्ट नहीं देना चाहते और न ही आपकी पढ़ाई में कोई बाधा डालना चाहते हैं ! लेकिन इतना स्मरण रखना, हम आपको छोड़ने वाले नहीं हैं ! हम आपको... !’’ रणवीर अपना वाक्य पूरा कर पाये, इससे पहले ही पूजा की बस आ जाती थी और वह उसमें चढ़ने लगती । जिस समय पूजा बस में चढ़ने का उपक्रम करती थी, उसी समय रणवीर अपने वाक्य के अधूरे रहने और बस के शीघ्र आने पर झुँझलाकर अपने दाँये हाथ की मुट्ठी बनाकर बाँये हाथ की हथेली पर मारते हुए कहता ‘‘यार, येे सिटी बस इतनी जल्दी-जल्दी क्यों आ जाती हैं ! यह बस और थोड़ी-सी देर बाद आती तो मैं और कुछ मिनट उसके साथ बात कर लेता ! मेरा भाग्य ही मेरे प्रतिकूल चल रहा है ! यदि भाग्य मेरे साथ होता, तो क्या दो साल तक परिश्रम करते रहने के पश्चात् भी वह मेरी उपेक्षा करती ! मेरे इतने संयम और शिष्टाचार के बावजूद वह मुझे घास नहीं डालती, अब क्या करूँ मैं ?’’
उस दिन भी प्रतिदिन की तरह ही पूजा छूट्टी के पश्चात् अपनी कक्षा से बाहर आयी तो भय और आशंका से चेहरा बुझा हुआ था । वह धीरे-धीरे मुख्य द्वार तक आयी और एक दीवार के सहारे खड़ी होकर आँखें बन्द करके कुछ क्षणों तक ईश्वर से प्रार्थना की । तत्पश्चात् मुख पर दृढ़ता का भाव लिये हुए मुख्य द्वार की ओर बढ़ने लगी । उस दिन तक वह ईश्वर से केवल वर्तमान की विपत्ति का हरण करने की प्रार्थना किया करती थी । आज पहला अवसर था, जब उसने निश्चय किया था कि वह निर्भय होकर रणवीर का सामना करेगी और हमेशा के लिए उससे पीछा छुड़ा लेगी ।
पूजा के काॅलिज से बाहर निकलते ही हमेशा की तरह रणवीर उसके पास आया और प्रफुल्लित मन से कहना आरम्भ किया ‘‘पूजा रानी ! आपने मुझे बहुत प्रतीक्षा करायी है, अब और नहीं ! बी॰ ए॰ की मुख्य परीक्षा के भी अब थोड़े ही दिन शेष रह गये हैं । तुम परीक्षा की तैयारी करने लगोगी तो मैं उसमें बाध डालना उचित नहीं समझता । परीक्षा सम्पन्न होने के पश्चात् तुम घर से ही न निकलोगी, इसलिए तुम्हें शीघ्र ही मेरा निवेदन स्वीकार कर लेना चाहिए !’’
ऐसा लगता था कि रणवीर भी उस दिन दृढ़ निश्चय करके आया था कि वह पूजा से अपना प्रणय-प्रस्ताव स्वीकार कराके ही छोड़ेगा । पूजा की रणवीर से पीछा छुड़ाने की व्याकुलता चरम पर थी और रणवीर ने संकल्प किया था कि वह पूजा को पत्थर से मोम बनाकर ही दम लेगा । उस दिन ऐसा लग रहा था कि दोनों के संघर्ष की निर्णायक स्थिति आ गयी है ।
पूजा दृष्टि नीचे किये हुए चल रही थी और उसके साथ-साथ रणवीर कभी निवेदन, कभी चेतावनी की मुद्रा में अपने भावों को अभिव्यक्त करते हुए चल रहा था । बात करते हुए चलते-चलते अचानक रणवीर ने पूजा का हाथ पकड़ लिया -‘‘देखो ! आज मेरी बात सुने बिना और उसका उत्तर दिये बिना तुम बस में नहीं चढ़ोगी, पूजा रानी !’’
‘‘इन दो-ढ़ाई वर्षों में तुम्हें मेरा उत्तर नहीं मिला ? यदि नहीं मिला, तो जीवन-भर नहीं मिल सकता, क्योंकि मैं अपना उत्तर बहुत पहले दे चुकी थी ! जो उत्तर तुम चाहते हो, वह मुझ-सी लड़कियों से नहीं मिला करता है !’’
‘‘नहीं पूजा, उत्तर तो तुम्हें वही देना पड़ेगा, जो मेरे पक्ष में होगा । यदि मैं तुम्हारे उत्तर से सन्तुष्ट होता तो बहुत पहले ही मैं तुम्हारे आगे-पीछे चक्कर लगाना छोड़ चुका होता ! आज तुम्हें हाँ कहना ही होगा !’’
रणवीर का आत्मविश्वास देखकर पूजा की दृढ़ता कमजोर पड़ने लगी । भय और कुछ अप्रिय घटना घटने की आशंका उसको अपने प्रभाव में लेने लगी । भय और आशंका से त्रस्त पूजा का चेहरा अचानक क्रोध् से लाल हो गया । उसने आवेश में आकर रणवीर से कहा ‘‘आपको एक बार का कहा हुआ समझ में नहीं आता है क्या ? अब तक मैं समझती थी कि तुम एक आवारा किस्म के लड़के हो, परन्तु अब लगता है कि तुम पागल भी हो ! मैंने तुम्हें आज तक कुछ नहीं कहा, पर आज के बाद यदि तुमने मुझे परेशान किया तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना ! ’’
पूजा के क्रोध् का और चेतावनी का रणवीर पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ा । वह पहले की तरह ही आत्मविश्वास से परिपूर्ण मुस्कुराता रहा । कुछ देर बाद वे दोनों बस-स्टाॅप पर पहुँच गये । पूजा वहाँ खड़ी होकर बस की प्रतीक्षा करने लगी । रणवीर ने पूजा को अपनी बाइक पर बैठने का प्रस्ताव किया । यद्यपि वह जानता था कि पूजा उसकी बाइक पर कदापि न बैठेगी, परन्तु जब तक सिटी बस नहीं आ गयी, तब तक वह बार-बार अपने प्रस्ताव को भाँति-भाँति तरीकों से दोहराता रहा और पूजा चुपचाप खड़ी रही । उसके हाव-भाव से स्पष्ट पता चलता था कि स्वयं को वह उस समय बहुत ही व्यग्र और विवश अनुभव कर रही थी । लगभग तीन-चार मिनट तक प्रतीक्षा करने के पश्चात् सिटी बस आ पहुँची । पूजा अति शीघ्रता से उसमें चढ़ गयी । वह प्रयास कर रही थी कि रणवीर की ओर न देखे, परन्तु मन नहीं माना । उसने न चाहते हुए भी पीछे मुड़कर देखा कि रणवीर वहीं खड़ा है अथवा चला गया ? रणवीर की ओर देखते ही पूजा के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा । रणवीर मुस्कराता हुआ पूजा की ओर हाथ हिला रहा था, जैसे उसे पहले से ही ज्ञात था कि पूजा उसकी ओर मुड़कर अवश्य देखेगी ।
रणवीर को प्रसन्नवदन देखकर पूजा की आँखें क्रोध से लाल हो गयी । उसने घृणापूर्वक क्रोध की मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए रणवीर की ओर से मुँह फेर लिया और खाली सीट देखकर उस पर बैठ गयी । सीट पर बैठकर वह सायास बाहर की ओर देखने से बच रही थी । वह ऐसा कुछ अनुभव करने का प्रयास कर रही थी कि अब वह रणवीर की पहुँच से बहुत दूर है, इसलिए अब चिन्ता करने की या भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है । इसी प्रयास के साथ उसने कल्पना की कि अब वह राहत का अनुभव कर रही है । अतः उसने ईश्वर का ध्न्यवाद किया और एक लम्बी गहरी साँस ली । परन्तु, अगले ही क्षण वह भय से काँपने लगी । रणबीर उसकी सीट के ऊपर झुका हुआ कह रहा था -
‘‘डार्लिंग, चिन्ता मत करना ! मैं तुम्हारे घर तक तुम्हारे साथ-साथ चलूँगा ! विश्वास न हो तो कहीं भी कभी भी खिड़की से झाँक कर देख सकती हो ! यूँ समझ लो, अब हम तुम्हें एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोडेंगे ! तुम यह भी समझ सकती हो कि अब हम तुम्हें देखे बिना एक पल भी स्वस्थ नहीं रह सकते ! कम सेे कम तब तक तो बिल्कुल नहीं, जब तक कि तुम हमारा प्रणय-प्रस्ताव स्वीकार नहीं करोगी !’’
डॉ. कविता त्यागी
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